Thursday, October 13, 2011

माँ

"हिम सी शीतलता लिए,
तेज सूरज सा धरे,
उसके आँचल के समक्ष,
ब्रहमांड भी छोटा पड़े"

"है दुर्गा का एक रूप वो,
और गंगा से भी कोमल है,
उसके चरणो के तले,
हर दीप ज्ञान का जले"

"कर सकती है उत्पत्ति वो,
तो नाश की भी शक्ति धरे,
वात्सल्य की है एक ख़ान वो,
दूध में जिसके अमृत बहे"

"सब देवों में है उच्च वो,
चाहे जहाँ ओर जो रूप धरे,
सत सत नमन है तुझको माँ
कितना ओर मैं तेरा गुणगान करूँ"

"बस एक तेरी वंदना के लिए ,
आज तक कोई शब्द नही बने"

"अक्स"

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