Thursday, January 20, 2011

आधुनिकता

"आज के इस आधुनिक युग में,
समय बड़ी तेज़ी से बदल रहा है,
जहाँ मनाते थे पहले खुशियाँ संग संग,
आज इंसान दूसरे के गम से भी कट रहा है"

"बदल रही है हर रिश्ते की परिभाषा,
रगो में बहता सुर्ख लहू पानी हो रहा है,
भाई भाई को काट रहा पैसे की खातिर,
बेटा मां की कोख की कीमत अदा कर रहा है"

"भावनाओ की कीमत हो गयी है शून्य अब,
आँसू भी आज बाज़ार में बिक रहा है,
यही चलन है इस आधुनिक दुनिया का अक्स,
तिस पर भी मानव खुद को विकसित कह रहा है"

"अक्स"

1 comment:

Atul Shrivastava said...

दुनिया की वास्‍तविकता को उजागर करती रचना। सही कहा आपने आधुनिकता ने समाजिक रिश्‍तों को ही किनारे कर दिया है।
आपको अच्‍छी और बेहतरीन रचना के लिए बधाई।
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