"उनकी पलकों पर फैली वो मद्धम सी हया,
जाने क्यूँ मेरे दिल में उतर जाती है,
उनकी निगाहों में उभरती हुई एक लकीर,
मानो मेरे होने पर ही एक सवाल उठाती है"
"वो मुस्कुराती है होले से कुछ इस तरह,
जैसे रात में तारो संग चांदनी फ़ैल जाती है,
लब थिरकते रहते हैं पर न कुछ बोलती वो,
बिन कुछ कहे भी जाने कैसे सब कह जाती है"
"तडपाती है मुझे जाने क्यूँ उन अदाओ से,
फिर एक तिरछी नज़र से घायल कर जाती है,
बड़ी अजीब है ये उसकी क़त्ल करने की अदा अक्स,
जिसको वो अपनी हया के पहलू में छुपा जाती है"
"अक्स"
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
dil se nikli dil ko chhoo lene vali bat
पॉल बाबा का रहस्य आप भी जानें
http://sudhirraghav.blogspot.com/
wah wah...
kya khoob likha hai ..
God bless you dear.
Good,this is high time to write such poems,keep writing.Enjoy these moments and love every thing on earth.
My best wishes,
dr.bhoopendra
jeevansandarbh.blogspot.com
Post a Comment