"आज अनायास ही मस्तिष्क में उभर आए कुछ पल,
गूलर व्रक्ष पर खिले उस सलोने पुष्प की तरह,
जज़्ब थी कहीं कहीं शीत ऋतु की ज्वाला उनमे,
तो कहीं दमके सुलगते हुए अँगारे की तरह"
"बहने लग पड़े मानसिक पटल पर कुछ यूँ,
पर्दे पर अभिनीत किसी चलचित्र की तरह,
देख जिसे उभरी महीन रेखाएँ किसी ललाट पर,
किसी ह्रदय में उभरे एक बवंडर की तरह"
"जाने क्यूँ आंकलन करने लग पड़ा मैं उनका,
बैठ किसी बही में एक मुंशी की तरह,
जोड़ने लग पड़ा कि ऩफा ओ नुकसान देखूं,
अटका जो एक बार तो इसी में रह गया बिंदु की तरह"
"अक्स"
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