"आज फिर यूँ ही घर से निकलते ही,
वो फिर सामने आ खड़ी हुई,
उलझे बाल, रूखा चेहरा लिए,
मानो किसी ने उसका खून चूस लिया हो"
"हाँ यही तो हुआ था शायद उसके साथ,
पहले घर की चारदीवारी,फिर संतानो ने चूसा,
बाकी बचा हुआ समाज की खोखली कुरीतियों ने ,
छोड़ा तो बस हाड़ माँस का एक गलता हुआ शरीर"
"उसे देख जाने मुझे ऐसा क्यूँ लगता है,
वो इस खोखले समाज की ज़िंदा तस्वीर है,
धीरे धीरे समाज भी गल रहा उसके साथ अब,
ओर वो बेबस पड़ी पड़ी सिसक रही है"
"अक्स"
Friday, May 28, 2010
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