"पेड़ से गिरे पत्तो को देखकर,
सोचता हूँ इनका कसूर क्या है,
आते हैं संग खुशियों के पल लेकर,
आँगन सबका ये हरियाते हैं"
"खिलखिलाते हैं पेड़ पर बच्चों की तरह,
मन हर पल सबका हर्षाते हैं,
दुख की धूप हो या छाँव सुख की,
गले मिल यूँ सब संग बिताते हैं"
"खुद सहकर ये धूप गमो की,
ममतामयी छाँव सब पर बरसाते हैं,
फिर एक दिन तोड़ ये नाता सबसे,
किसी गुमनामी में खो जाते हैं"
"हाल अपना भी है इन पत्तो की तरह,
हो अपना या पराया सबको गले लगाते हैं,
पर जाने हमसे क्या खता हुई ज़िंदगी में,
सब हमे अकेला कर रुखसत हो जाते हैं"
"अक्स"
Sunday, December 27, 2009
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