इस ज़िंदगी के भंवर में उलझा मेरा मन
जाने किस तिनके के सहारे ठहरा है
बेबस मेरा मन भी है ओर सेहरा भी
क्यूंकर दूर तलक हवाओं का पहरा है"
"उफनती लहरों के बीच उलझा मेरा मन
शनै शनै एक काली गर्त में समा रहा है
भंवर में बन रहा एक भयानक कालचक्र
मेरे मन को जाने किस ओर धकेल रहा है"
"डर और उलझन के बीच भटक रहा मेरा मन
किसी हमराह की मंज़िल ढूँढ रहा है
दर दर की ठोकरें खा रहा ये अक्स
बस एक अनकहा दर्द पाल रहा है"
"अक्स"
Saturday, September 26, 2009
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