Monday, August 17, 2009

ज़िंदगानी

"तारीक़-ए-मंज़िल में मेरी ज़िंदगानी खो गयी,
जाने कहाँ पे ए सनम तेरी निशानी खो गयी,
मय से नाता जोड़ के मैं चला जाने किधर,
मयकदे में खूबसूरत वो रवानी रह गयी"

"तू है ना जाने किधर तेरा ठिकाना है कहाँ,
खोजने में तमाम जिसको ज़िंदगानी हो गयी,
हिज़ृ का वो एक लम्हा आज भी बस याद है,
भूलने में अक्स जिसको मेरी जवानी बह गयी"

"मयकसो के उस जहाँ में अपना भी अब नाम है
यूँ करगुज़ारी एक मेरी काम मेरे आ गयी,
तुझको भूला ना कभी ओर ना ही भूल पाऊँगा,
याद तेरी एक टीस बनकर दिल में मेरे अब रह गयी"

"शाम-ए-ज़िंदगी अब मेरी ख़त्म होने ही को है,
रोशनी जो इसमे थी जाने कहाँ वो रह गयी,
रुखसती का वक़्त अब इस जहाँ से आ गया,
सांस मेरी ना जाने क्यूँ तुझ में अटक कर रह गयी"

"अक्स"

No comments: