Wednesday, November 12, 2008

पतझड़

"आज फिर पतझड़ का मौसम आया है
बनकर बेकरारी सबके दिलों पर छाया है
बेकरार-ओ-बेबस हैं सब इस पतझड़ में
इसने सभी का चैन चुराया है
आज फिर पतझड़ का मौसम आया है"

"पतझड़ में पत्ते साख से बिछड़ जाते हैं
अजनबी की तरह न कभी वापस आते हैं
कहाँ जाते हैं नहीं जानता कोई
बस दिलों में अपनी यादें छोड़ जाते हैं"

"कहते हैं लोग पतझड़ बीत जाएगा
कभी न कभी बसंत भी आएगा
पर जो बिछड़ गए हैं इस पतझड़ में हमसे
कोई बताये उन्हें कौन वापस लायेगा"

"इस दिल से निकलती है दुआ ऐ-रब
ऐसा पतझड़ न किसी के जीवन में आए
न बिछ्ड़ें उससे कभी उसके अपने
वो न एक साख से टूट पत्ता बन जाए"

"अक्स"

No comments: