Wednesday, November 5, 2008

सफर

"निकला हूँ एक अनजाने सफर पर
न मालूम जाना कहाँ, जाना किधर,
बस चला हूँ नापते हुए डगर
मन में है शंका फिर भी मगर
की क्या है ये ज़िंदगी का सफर"

"जिसे करते हैं लोग पर हैं बेखबर
इतने बेखबर कभी न जान पाये
कब मौत ने लिया आकर उनको धर
मैं सोचने को हूँ मजबूर साहिल
कैसा सफर है ये ज़िंदगी का सफर"

"जहाँ पल में लोग मिलते हैं, बिछड़ते हैं
यादें बनकर कर जाते हैं दिल में घर
ये कैसा सफर,न मालूम जाना कहाँ जाना किधर
लगता है नहीं कोई सरहद-ऐ-सफर
फिर भी चला जा रहा हूँ अनजानी डगर"

"न जाने साहिल कहाँ जाए ये डगर
फिर भी चल रहा है सफर
मन में है बस यही बात मगर
ज़िंदगी का सफर , ये कैसा सफर"

"अक्स"

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