Saturday, November 1, 2008

उलझनें

" जीवन की ये उलझनें है कैसी
न जिसे मैं सुलझा पाता हूँ
कोशिश में इसे सुलझाने की
मैं ख़ुद ही उलझ जाता हूँ
जीवन की ये उलझनें है कैसी
जिसे मैं सुलझा पाता हूँ"

"फंसकर रह गया हूँ मैं इनमें
न कभी इनसे निकल पाता हूँ
चाहता हूँ मैं बचना इनसे
सामने इनके मैं असहाय हो जाता हूँ
जीवन की इन उलझनों की खातिर
मैं ख़ुद को मिटाने पर आमादा हूँ"

"बनकर रह गया हूँ मैं कैदी इनका
न इनसे कभी मैं बच पाता हूँ
जीवन के हर मोड़ पर साहिल
इन उलझनों को खड़ा पाता हूँ
जीवन की ये उलझनें है कैसी
जिसे मैं सुलझा पाता हूँ"


"अक्स"

1 comment:

प्रदीप मानोरिया said...

जीवन की जो भी उलझन है . यदि करो तुम आत्म विवेचन
सुलझेंगी वो सारी उलझन उलझ उलझ कर सुलझे जीवन

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