"बारिश की ये नन्ही बूँदें
खेल रही हैं जल थल में
आकर नील गगन से ये
समां रही एक जल में
शांत स्वर से गिरी धारा पर
मिट गई एक ही पल में
बारिश की ये नन्ही बूँदें
खेल रही हैं इस थल में"
"छोड़ तात का रैन बसेरा
निकली एक अनजानी धुन में
जाने क्या है अभिलाषा इनकी
निकल पड़ी एक ही पग में
करने चली शांत धरा को
मिटकर ख़ुद ही इस जग में
बारिश की ये नन्ही बूँदें
खेल रही हैं जल थल में"
"अक्स"
Friday, October 3, 2008
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