Thursday, October 30, 2008

कोमल पंखुडियां

"फूलों की ये नाजुक, कोमल पंखुडियां,
लगती हैं संकुचाई सी, सर्माई सी,
ज्यों छिपा लिया हो बच्चो को माँ ने आँचल में,
फिर भी है थोडी लजाई,थोडी घबराई सी,
कितनी सुंदर लगती हैं ये कोमल पंखुडियां,
जैसे हो कोई नवेली दुल्हन सकुंचाई सी,
छूने में इनको लगता है ये डर मुझको,
हो न जाए कोई मुरझाई सी, कुम्लहाई सी,
फूलों की ये नाजुक, कोमल पंखुडियां,
लगती हैं संकुचाई सी, सर्माई सी"

"अक्स"

5 comments:

manvinder bhimber said...

जैसे हो कोई नवेली दुल्हन सकुंचाई सी
छूने में इनको लगता है ये डर मुझको
हो न जाए कोई मुरझाई सी, कुम्लहाई सी
फूलों की ये नाजुक, कोमल पंखुडियां
लगती हैं संकुचाई सी सर्माई "
bahut sunder rachana hai

!!अक्षय-मन!! said...

bahut hi badiya likha hai bhadhai............
ज्यों छिपा लिया हो बच्चो को माँ ने आँचल में
फिर भी है थोडी लजाई,थोडी घबराई सी
ye panktiyaan kamal ki hain

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

wah jee wah, khub likhate ho
narayan narayan

प्रदीप मानोरिया said...

सच कहा आपने .

एक निवेदन हटा दो यह बाधा शब्द पुष्टिकरण की .. मेरे ब्लॉग पर दस्तक दीजिये अच्छा लगे तो टीका भी अवश्य करें

रचना गौड़ ’भारती’ said...

कमाल का लिखा है आपने बधाई।