"बीती विभावरी जाग री
फूलों पर भवरें मंडराएं
पेड़ों पर बोल रही कागरी"
"डालों पर पंछी हैं बोले
नन्हे मुन्नों ने भी हैं पर खोले
महक रहा सारा बाग़ री
बीती विभावरी जाग री "
"खग मृग सब दौड़ रहे
पीछे सबको वो छोड़ रहे
तू खड़ी क्यूँ चुप चाप री"
"यहाँ वहां पुष्प खिले हैं
खुशबू से सब महक रहें हैं
कल-कल करती बहे सरिता
आन्नद से मैं हो रही बावरी
बीती विभावरी जाग री"
"अक्स"
Thursday, October 30, 2008
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