Friday, October 3, 2008

जीवन गाथा

"जीवन की पराकाष्टा पर पहुँच कर
मुझको ये ख्याल आया
चलो अब विश्लेषण कर लें
जीवन में क्या खोया क्या पाया"

"
देखा झाँक कर जीवन में
नहीं कुछ भी ऐसा नज़र आया
जो लगे मुझे अपना सा
कह सकूं मैंने ये पाया"

"एक जीवन था बस मेरा अपना
वो भी मैंने यूँ ही गंवाया
उसमे एक खुशी ढूँढने की खातिर मैं
अतीत के पन्ने पलटता नज़र आया"

"अंत में सार यही निकला
न कुछ खोया, न कुछ पाया
दिल पूछता बस यही साहिल
मैं इस जीवन में क्यों आया"


"अक्स"

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