"यूँ छिट्के हैं तारे नभ में,
टूट गयी ज्यों मोती माला,
चमक रहीं यूँ किरणें जल में,
मुस्काये कोई कंचन बाला"
"रंग बिरंगे पुष्प खिलें हैं,
नृत्य करती उन पर परी बाला
मंद सुगंध यूँ बहे पवन में,
लगता हो देवो की मधुशाला"
"खग मृग पक्षी करें हैं कलरव
उपवन बना दिया रंगशाला,
दूर सोच में चल पड़ा भास्कर,
दमक रही हर पर्वतमाला"
"कटी रात अंधियारी दुख की'
फैल रहा हर ओर उजाला,
प्रात: काल का करता वर्णन,
हर्षित मन से मैं मतवाला"
"अक्स"
Thursday, September 18, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment