“आज फिर वो याद आया है
बनकर धुन्ध मेरे ज़ेहन पर छाया है
देख कर जिसको मैं जीता था हर पल
आज दिल में बनकर दर्द उभर आया है”
“वो मेरे जीवन का अधूरा ख़्वाब
जो कभी ना पूरा हो पाया है
जिसको पूरा करने की जद्दोजहद में
ये जीवन भी मैने गँवाया है”
“देखता हूँ ख़्वाब उसको पाने के
जो मेरा हो कर भी पराया है
खोने पाने के इस चक्रव्युह मैं
आज फिर एक अभिमन्यु आया है”
“करण कौन अर्जुन यहाँ है
ये दिल ना अभी तक जान पाया है
फिर भी उसको याद कर साहिल
दिल में एक दर्द उभर आया है”
"अक्स"
Thursday, September 18, 2008
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1 comment:
Hi Atul,
Good poem.
Keep it up.
From
Shilpa
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